
बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावारू और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने संयुक्त रूप से कही।
Bihar News In Hindi: चुनाव से ठीक चार महीने पहले 20 साल में पहली बार बिहार में इतने बड़े पैमाने पर मतदाता सूची का पुनरीक्षण निर्णय लिया गया है। यह प्रक्रिया ना तो पारदर्शी और ना ही व्यवहारिक है। ये बातें दिल्ली अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के मुख्यालय में आयोजित संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में एआईसीसी के मीडिया एवं पब्लिसिटी विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा, बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावारू और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने संयुक्त रूप से कही।
एआईसीसी के मीडिया एवं पब्लिसिटी विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा ने कहा कि बिहार को मतदाता पुनरीक्षण के नाम पर चुनाव से पूर्व बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम काटने की कवायद है। उन्होंने आंकड़े दिए कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट को देखेंगे तो 2001-2006 के बीच बिहार में जन्मे सिर्फ 2.28% बच्चों के पास जन्म प्रमाण पत्र है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2002 में बिहार में जन्म पंजीकरण की दर 3.7% थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 56.2% था। साल 2004-2005 में भी बिहार में जन्म पंजीकरण की दर 11.16% से भी कम थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 60.64% था। विगत कुछ दिनों में एक सर्वे आया और उस सर्वे में दिखाया की इंडिया गठबंधन और हमारे नेता राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी है। इसी को देखते हुए चुनाव आयोग की मदद से ऐसे काम किए जा रहे हैं। लेकिन कोई इस मुगालते में न रहे कि बिहार के लोग राजनीतिक तौर पर जागृत नहीं हैं और इतिहास इस का गवाह रहा है। चुनाव आयोग का ऐसा रवैया, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के दिए हुए, उस मौलिक अधिकार का हनन होगा, जिसमें समान वोट का अधिकार है। यह फैसला लोगों को वोट से वंचित करने का है- जिसका हम पुरज़ोर विरोध करते हैं।
बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावारू ने कहा कि चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता पुनरीक्षण का तुगलकी फरमान जारी कर दिया है। देश में इससे पहले वर्तमान सरकार ने कई तुगलकी फरमान जारी किए हैं जिसमें नोटबंदी, जीएसटी के रूप में व्यापार बंदी, लॉकडाउन के रूप में देशबंदी, सेना जब पाकिस्तान पर हावी थी तो युद्धबंदी लागू कर देती है। सरकार के इशारे पर इस तरीके के फरमान लागू किए जा रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और चुनाव आयोग को चुनौती देते हुए कहा कि एक साल पहले जिन्होंने अपना वोट देकर लोकसभा चुनाव में अपनी हिस्सेदारी निभाई थी आज उन्हें खुद को मतदाता के रूप में सत्यापित करने का निर्देश दे दिया गया है वो भी मात्र 28 दिनों में जो बताने के लिए काफी है कि देश की सरकार और इसकी संस्थाएं बुद्धि बंदी से ग्रस्त हैं। आधार कार्ड को भी इस मतदाता पुनरीक्षण से बाहर रखकर 8 करोड़ मतदाताओं को अपने मताधिकार को सुरक्षित रखने के लिए ऐसे कागजातों की मांग की जा रही है जो उनके पास है ही नहीं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि बीएलओ के पास हजारों मतदाताओं के सत्यापन की जिम्मेदारी है, लेकिन उन्हें संसाधन नहीं दिए गए हैं। क्या यह असल में बिहार के युवा, मजदूर, बाढ़ और रोजी रोजगार की तलाश में पलायन को प्रभावित वोटर को बाहर करने की सोची समझी साजिश है? बिहार में एनडीए गठबंधन की सरकार विगत 20 साल में ऐसी कोई भी नई बहाली नहीं कर पाई है जिससे यह कार्यक्रम सुचारू रूप से संचालित हो सकें। मतदाता पुनरीक्षण के लिए बिहार सरकार के पास सक्षम अधिकारी नहीं हैं, जो यह काम कर सकें, साथ ही अधीनस्थ कर्मचारियों की संख्या कम है। ऐसे में चुनाव आयोग से मेरा सवाल है कि ये काम केवल 28 दिनों में कैसे किया जाएगा?
बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि ये सवाल इसलिए भी है कि जब बिहार में सरकारी विभागों में 4 लाख पद रिक्त हैं तो यह काम कौन करेगा, क्या इसे चुनाव आयोग भाजपा के कार्यकर्ताओं से इस काम को करेंगे? जिस सीजन में बिहार के लोग बाहरी राज्यों में काम करने गए होते हैं और बिहार के कई हिस्से बाढ़ से प्रभावित होते हैं, उसी समय ये काम करने की हड़बड़ी दिखाई जा रही है जो स्पष्ट करती है कि चुनाव आयोग की मंशा संदिग्ध है। चुनाव आयोग का कहना है कि हमारे अधिकृत लोग दो बार लोगों के पास जाएंगे और जो लोग इस प्रक्रिया में खुद को शामिल नहीं करेंगे, उनका नाम हटा दिया जाएगा। कुल मिलाकर ये प्रक्रिया करीब 8 करोड़ लोगों को उनके वोट के अधिकार से वंचित करने की सोची-समझी साजिश है। चुनाव आयोग से मुलाकात के दौरान ऐसा बार-बार महसूस हो रहा था कि यह लड़ाई सिर्फ बिहार की नहीं रह गई है, क्योंकि हमारे डेलिगेशन की चर्चा में यह बात साफ़ दिख रही थी। चर्चा के दौरान चुनाव आयोग का अतिरेक देखकर समझ आ रहा था कि 'मानो उन्होंने ठान लिया है कि बिहार के 20% वोटरों से उनका अधिकार छीन लेना है।'सरकार हर निर्णय में आधार को जोड़ती है, लेकिन चुनाव के मामलों में सरकार आधार को नहीं जोड़ रही है। इसलिए चुनाव आयोग विशुद्ध रूप से शंका के घेरे में है, जो बिहार के 20% वोट को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। बाढ़ से पीड़ित लोगों के घर में कुछ नहीं होता है। हर बार बाढ़ के समय इनके घर का आंगन डूब जाता है, इन्हें अगली बार फिर से घर तैयार करना पड़ता है। ऐसे लोग जो बड़ी मुश्किलों में जीवन जी रहे हैं, वो आपके लिए प्रमाण कहां से लाएंगे?
हमारे सवाल है कि क्या पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मात्र एक महीने में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन का निर्णय लेने वाले लोग कौन थे? सवाल ये भी है कि चुनाव आयोग की अधिसूचना के बाद मात्र 28 अब तो केवल 19 दिन बचे हैं, में ये काम कैसे हो पाएगा? हमें इस कदम से साफ-साफ नजर आ रहा है कि बिहार के वोटरों के साथ ये चुनाव आयोग का अन्याय है।