
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया
Bihar News In Hindi : बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज एक महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। इस मामले में चुनाव आयोग को बड़ी राहत मिली है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने फिलहाल मतदाता सत्यापन प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने चुनाव आयोग को कुछ अहम सलाह भी दी है, जिस पर अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
सुनवाई की प्रमुख बातें और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
पुनरीक्षण जारी रहेगा: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है और इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यह सुनिश्चित करने के लिए कि मतदाता सूची शुद्ध हो और कोई भी गैर-नागरिक सूची में न रहे, यह कवायद आवश्यक है।
आधार, वोटर कार्ड, राशन कार्ड को शामिल करने की सलाह: याचिकाकर्ताओं की ओर से यह दलील दी गई थी कि चुनाव आयोग द्वारा मांगे जा रहे 11 दस्तावेजों में आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों को शामिल नहीं किया जा रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को इन दस्तावेजों को भी सत्यापन प्रक्रिया में शामिल करने पर विचार करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया उसकी राय है कि न्याय के हित में इन दस्तावेजों को स्वीकार किया जाना चाहिए।
नागरिकता और पहचान का अंतर: सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, बल्कि यह केवल पहचान का प्रमाण है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकता तय करना गृह मंत्रालय का काम है, चुनाव आयोग का नहीं। कोर्ट ने टिप्पणी की कि यदि चुनाव आयोग मतदाता सूची में किसी का नाम केवल नागरिकता साबित होने के आधार पर शामिल करेगा, तो यह एक बड़ी कसौटी होगी।
टाइमिंग पर सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में विधानसभा चुनावों से कुछ ही महीने पहले इस विशेष गहन पुनरीक्षण की टाइमिंग पर भी सवाल उठाया। जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन समय एक बड़ी समस्या है, क्योंकि जिन लोगों को सूची से हटाया जा सकता है, उनके पास अपील करने का पर्याप्त समय नहीं होगा।
सुनवाई का अवसर: चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि बिना सुनवाई और उचित प्रक्रिया के किसी भी वैध मतदाता का नाम सूची से नहीं हटाया जाएगा। आयोग ने कहा कि लोगों को उनके वोट देने के अधिकार से वंचित करने का कोई इरादा नहीं है।
चुनाव आयोग का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को खारिज कर दिया कि निर्वाचन आयोग के पास बिहार में ऐसी किसी कवायद का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर चुनाव आयोग से एक हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है। अगली सुनवाई 28 जुलाई, 2025 को होगी। तब तक बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य जारी रहेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट की सलाह को किस हद तक मानता है और क्या वह आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को सत्यापन दस्तावेजों की सूची में शामिल करता है। यह फैसला बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों और वहां की चुनावी प्रक्रिया के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा।
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