
उन्होंने यह भी कहा कि “भुगतान की प्रक्रिया में भारी अनियमितता और भ्रष्टाचार व्याप्त है।
Hemant government should not cheat farmers, give them their rights: Rafia Naz News: रांची: झारखंड के मेहनतकश किसानों को छह महीने बाद भी उनकी उपज का पूरा भुगतान न मिल पाना राज्य सरकार की अक्षमता और संवेदनहीनता का स्पष्ट प्रमाण है। 36,497 किसानों ने सरकार पर भरोसा करते हुए 5.07 लाख क्विंटल धान की आपूर्ति की, लेकिन उनमें से 9,615 किसानों को आज भी उनका हक नहीं मिला है। इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि 4,929 किसानों को अब तक एक भी रुपया नहीं मिला है। राफिया ने कहा, “किसानों की जेबें खाली हैं, खेत सूने पड़े हैं, और सरकार मौन है। अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में झारखंड की कृषि व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी।
उन्होंने यह भी कहा की “भुगतान की प्रक्रिया में भारी अनियमितता और भ्रष्टाचार व्याप्त है। जिसका एक उदाहरण हजारीबाग जिले में ही दो दरों में 40 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला सामने आया है, जो शासन प्रणाली की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।”
उन्होंने सरकार से सवाल करते हुए कहा, “किसानों को भुगतान में हो रही देरी के लिए जिम्मेदार कौन है? किस अधिकारी ने इन निर्दोष किसानों को दर-दर भटकने पर मजबूर किया? क्या इनका कोई जवाबदेह नहीं है?”
राफिया ने कहा “जब अन्नदाता ही भूखा रह जाए, तो वह शासन नहीं, शर्म है। राज्य सरकार की नीतियाँ केवल कागज़ों पर हैं, ज़मीनी सच्चाई इससे कहीं अधिक दर्दनाक और अन्यायपूर्ण है।” उन्होंने कहा कि जिस सरकार को किसानों की मेहनत का सम्मान करना चाहिए, वही सरकार उन्हें छह महीने से झूठे वादों और तारीखों के जाल में उलझा रही है।
राफिया ने कहा, “झारखंड की कृषि व्यवस्था एक गहरे संकट से गुजर रही है। सरकार द्वारा धान क्रय की प्रक्रिया में जिस प्रकार की ढिलाई, लापरवाही और भ्रष्टाचार सामने आया है, वह प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि किसानों के प्रति एक संगठित उपेक्षा है। राज्य खाद्य निगम के रिकॉर्ड के अनुसार अब तक लगभग 128 करोड़ रुपये का भुगतान लंबित है। यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की आजीविका से जुड़ा सवाल है।
राफिया ने कहा “कई किसानों ने बैंक से कर्ज लेकर बीज, खाद, ट्रैक्टर और मजदूरी में निवेश किया था, इस उम्मीद में कि उन्हें समय पर भुगतान मिलेगा। लेकिन सरकार की निष्क्रियता ने उन्हें भारी कर्ज़ तले दबा दिया है। गांव-गांव से मिल रही रिपोर्ट्स बताती हैं कि किसान अब खेती से पीछे हटने पर मजबूर हो रहे हैं। रांची, हजारीबाग, गिरिडीह, चतरा और कोडरमा जैसे जिलों में किसान संगठनों ने कई बार प्रदर्शन किए, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
राफिया ने कहा, “किसानों को अपने भुगतान के लिए बार-बार दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। न बैंक जवाब दे रहे हैं और न ही संबंधित विभाग। कई किसानों ने मजबूरी में कर्ज लिया है, कुछ ने अपनी जमीन तक गिरवी रख दी है। सरकार ने न केवल उनके आर्थिक जीवन को संकट में डाला है, बल्कि उनके आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचाई है।”
झूठे वादों से नहीं, समय पर भुगतान से मिलेगा किसानों को सम्मान
राफिया नाज़ ने मांग की कि किसानों को उनकी लंबित राशि का तत्काल भुगतान किया जाए। उन्होंने चेताया कि यदि भुगतान में और देरी होती रही, तो इसका सीधा असर अगली फसल पर पड़ेगा और झारखंड को "धान का कटोरा" कहने का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।
उन्होंने कहा, “सरकार किसानों से अपील करती है कि वे सरकारी एजेंसियों को ही धान बेचें ताकि उन्हें सही मूल्य मिल सके। लेकिन जब वही एजेंसियां भुगतान में धांधली करती हैं, तो यह किसानों की पीठ में छुरा घोंपने जैसा है। किसानों की जेबें खाली हैं, खेत सूने पड़े हैं, और सरकार मौन है। यदि यही हाल रहा, तो आने वाले समय में झारखंड की कृषि व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी।”
राफिया ने कहा “यह केवल धान का भुगतान नहीं, किसानों के खून-पसीने की कीमत है। हर दिन की देरी उनके सपनों को कुचल रही है, उनके बच्चों के भविष्य को अंधेरे में धकेल रही है। खेतों में अनाज नहीं, अब चिंता उग रही है। अगर आज भी सरकार नहीं जागी, तो कल ये किसान अपने खेत नहीं, अपना भरोसा छोड़ देंगे और जब अन्नदाता ही भरोसा खो देगा, तब झारखंड सरकार सरकार की नींव नहीं बच पाएगी।”
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