
यह बैठक सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद आयोजित की गई थी
SYL Meeting today Update News In Hindi : सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर विवाद को लेकर आज दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्री शामिल हुए। दशकों पुराने इस विवाद को सुलझाने के उद्देश्य से बुलाई गई यह चौथी ऐसी बैठक थी, लेकिन पिछली बैठकों की तरह इस बार भी किसी ठोस समाधान पर पहुंचना मुश्किल साबित हुआ।
बैठक का उद्देश्य और पृष्ठभूमि
यह बैठक सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद आयोजित की गई थी, जिसने दोनों राज्यों को केंद्र सरकार के सहयोग से इस मुद्दे का सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 अगस्त की तारीख तय की है, ऐसे में आज की बैठक पर सबकी निगाहें टिकी थीं।
SYL नहर परियोजना का निर्माण 1982 में शुरू हुआ था, लेकिन हिंसा और विरोध प्रदर्शनों के कारण 1990 में काम बंद हो गया। तब से यह मुद्दा दोनों राज्यों के बीच एक बड़े विवाद का कारण बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया है, लेकिन पंजाब सरकार नहर निर्माण के लिए तैयार नहीं है।
पंजाब का रुख
पंजाब ने एक बार फिर अपनी पुरानी मांग दोहराई कि उसके पास हरियाणा को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने नीति आयोग की बैठक में भी यह मुद्दा उठाया था और 'यमुना-सतलुज-लिंक नहर' के निर्माण पर विचार करने का सुझाव दिया था, जिसमें पंजाब को भी यमुना का पानी मिल सके। पंजाब का तर्क है कि उसकी अपनी नदियों, रावी, व्यास और सतलुज में पहले से ही पानी की कमी है।
हरियाणा का पक्ष:
हरियाणा लगातार अपने हिस्से के पानी की मांग कर रहा है। राज्य का दावा है कि नहर का एक बड़ा हिस्सा (92 किलोमीटर) हरियाणा में बन चुका है, जबकि पंजाब में 122 किलोमीटर का हिस्सा अभी भी अधूरा है। हरियाणा का मानना है कि उसे उसके हिस्से का पानी मिलना चाहिए और यह सिर्फ अधिकारों का मामला है।
बैठक का नतीजा:
आज की बैठक में भी कोई निर्णायक हल नहीं निकल पाया। दोनों राज्यों ने अपने-अपने पक्ष रखे, लेकिन सहमति नहीं बन पाई। यह स्पष्ट है कि पानी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर दोनों राज्य अपनी-अपनी स्थिति से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। केंद्रीय मंत्री ने दोनों राज्यों से सहयोग का आह्वान किया, लेकिन तात्कालिक रूप से कोई सफलता नहीं मिली।
अब सबकी निगाहें 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं। यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस बार क्या निर्देश देता है और क्या केंद्र सरकार इस जटिल विवाद का कोई स्थायी समाधान निकालने में सफल हो पाती है। यह मुद्दा न केवल दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे का है, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और भावी पीढ़ियों के लिए पानी की उपलब्धता का भी है। बिना किसी ठोस समाधान के, यह विवाद आने वाले समय में भी दोनों राज्यों के बीच तनाव का कारण बना रह सकता है।
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