
चुनाव आयोग ने दावा किया है कि 80.11 प्रतिशत मतदाताओं ने गणना प्रपत्र भर दिए हैं
Patna News In Hindi: पटना, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अपने आवास 01 पोलो रोड, पटना में इंडिया महागठबंधन के नेताओं के साथ संयुक्त संवादाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा कल 12 जुलाई को जारी प्रेस विज्ञप्ति में प्रस्तुत आंकड़ों और दावों में अनेक महत्वपूर्ण कमियाँ, विरोधाभास और लोकतांत्रिक चिंताएं छिपी हुई हैं।
ये कमियाँ न केवल प्रक्रिया की पारदर्शिता को बाधित करती हैं बल्कि जनविश्वास और संवैधानिक संतुलन पर भी प्रश्नचिह्न लगाती हैं। इस अवसर पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने बिंदुवार प्रमुख कमियाँ गिनाते हुए बताया कि बताया कि:-
1. चुनाव आयोग ने दावा किया है कि 80.11 प्रतिशत मतदाताओं ने गणना प्रपत्र भर दिए हैं, लेकिन यह नहीं बताया गया कि इनमें से कितने प्रपत्र सत्यापित, स्वेच्छिक और वैध तरीके से भरे गए हैं। जमीनी सतह से (फील्ड) से लगातार यह सूचना मिल रही है कि बिना मतदाता की जानकारी और उनके बिना सहमति के बी.एल.ओ के द्वारा फर्जी अंगूठा या हस्ताक्षर लगाकर प्रपत्र अपलोड किए जा रहे हैं। आंकड़े मात्र अपलोडिंग को दर्शाते हैं, जबकि आयोग ने प्रमाणिकता, सहमति और वैधता की कोई गारंटी नहीं दी है। चुनाव आयोग का 80.11 प्रतिशत मतदाताओं द्वारा गणना प्रपत्र भरने का दावा जमीनी हकीकत से पूर्णत विपरीत है।
2. चुनाव आयोग की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि दस्तावेज बाद में भी दिए जा सकते हैं, लेकिन इस बारे में कोई स्पष्ट आदेश या अधिसूचना अब तक जारी नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दस्तावेजों में लचीलापन लाने की सलाह के बावजूद, निर्वाचन आयोग ने कोई औपचारिक संशोधित अधिसूचना जारी नहीं की है, जिससे जमीनी सतह पर बी.एल.ओ और मतदाता दोनों भ्रमित हैं।
3. चुनाव आयोग ने यह नहीं बताया कि कितने गणना प्रपत्र बिना दस्तावेज या बिना मतदाता की प्रत्यक्ष भागीदारी के अपलोड हुए हैं। यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि इन 4.66 करोड़ डिजिटाइज्ड फॉर्म में से कितनों को आधार से वेरिफिकेशन हुआ है। यानि चुनाव आयोग फर्जी अपलोडिंग की संभावनाओं पर चुप्पी साधे हुए है। आज एक अखबार की खबर में देवघर, झारखंड में जलेबी बेचने वाले के पास हजारों फॉर्म मिले है। अनेक वीडियो वायरल हुए है जिसमें हजारों-लाखों फॉर्म सड़कों पर पड़े है। इस संबंध में विडियों एवीडेंस भी पत्रकारों को दिखाया गया।
4. चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों की भागीदारी का उल्लेख तो किया गया है, लेकिन यह नहीं बताया गया कि उनके द्वारा क्या वास्तविक निरीक्षण की इन्हें भूमिका दी गई है या सिर्फ उपस्थिति की सूचना ही दर्ज की जा रही है। कई जिलों में विपक्षी दलों के बी.एल.ए को सूचित नहीं किया गया है और प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी से रोका गया है। इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया है।
5. जल्दी-जल्दी में जिस तरह से वोटरस के प्रपत्र अपलोड किये जा रहे है उसके कारण चुनाव आयोग की विश्वसनीयता खत्म हो रही है। बी.एल.ओ और ई.आर.ओ के द्वारा अपलोडिंग का अनौपचारिक लक्ष्य थोपे जाने की कई रिपोर्ट आ चुकी हैं। आयोग ने इस पर कोई स्पष्टीकरण, खंडन या नियंत्रण का उपाय नहीं बताया, जिससे पूरा अभियान गैर-पारदर्शी बन गया है।
6. चुनाव आयोग की वेबसाईट में सफलता के दावे किए गए हैं लेकिन जमीनी सतह पर कहीं सर्वर डाउन, ओटीपी की समस्या, लाॅगीन एरर, दस्तावेज अपलोड फेल, गलत मैपिंग जैसी गंभीर तकनीकी समस्याएँ लगातार सामने आई हैं। तकनीकी शिकायतों की लगातार अनदेखी की जा रही है। इन शिकायतों के लिए बी.एल.ओ या मतदाता को कोई सपोर्ट सिस्टम, टिकटिंग पोर्टल या हेल्पलाइन उपलब्ध नहीं कराई गई है।
7. 25 जुलाई की समय सीमा के पहले ही अपलोडिंग पूरा करने की बात कही जा रही है, जिससे गुणवत्ता और वैधता की जगह संख्या और गति पर जोर है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चुनाव आयोग की यह एस.आई.आर प्रक्रिया एक आई वॉस है। चुनाव आयोग ने बीजेपी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर बूथ के आंकड़ों के हिसाब से पहले ही जोड़-तोड़ कर रखा है। लेकिन हम भी कम नहीं है, एक एक वोटर पर हमारी नजर है और सबका आंकड़ा हमारे पास है। केस सुप्रीम कोर्ट में है। अबकी बार बिहार से आर-पार होगा। सत्ताधारी बिहार को गुजरात समझने की गलती ना करें। यह लोकतंत्र की जननी है। सबक सिखा देंगे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजेार नहीं होने देंगे। यहाँ 90 फीसदी मतदाता वंचित उपेक्षित वर्ग से है। उनकी रोटी छीन सकते हो, लेकिन वोट का अधिकार नहीं।
इसके लिए महागठबंधन पूरी तरह से सजग है। बिहार से जो लोग पलायन कर गये है उनका अपलोडींग कैसे हो गया। जबकि वो अपने मतदाता सूची के पुनरीक्षण के कार्य में बिहार ही नहीं आये। और इनकी संख्या करीब 4 करोड़ के लगभग है। इन लोगों को सूची में कैसे शामिल किया जा रहा है चुनाव आयोग स्पष्ट करें।
8. चुनाव आयोग की गरिमा, पारदर्शिता और निष्पक्षता की रक्षा के लिए हमने बार-बार आयोग से आग्रह किया कि विधानसभा वार प्रतिदिन लाईव डैसबोर्ड का इस्तेमाल करने की मांग की है, ताकि आंकड़ों में पारदर्शिता और सच्चाई हो। हमने निरंतर मांग की है कि गणना प्रपत्र भरने पर मतदाता को उसकी पावती दी जाए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
9. आयोग का दावा है कि हर मतदाता को दो प्रतियाँ दी जाती हैं - एक भर कर वापस ली जाती है और दूसरी पावती के रूप में मतदाता के पास रहती है। जमीनी सच्चाई यह है कि अधिकांश मतदाताओं को मात्र एक ही गणना प्रपत्र दिया गया है। किसी को पावती या रसीद (।बादवूसमकहमउमदज ेसपच) नहीं दी जा रही है, जिससे मतदाता यह प्रमाणित भी नहीं कर पा रहा कि उसका फॉर्म स्वीकार हुआ है या नहीं।
न ही कोई ऐसा सिस्टम (एस.एम.एस, पोर्टल, हेल्पलाइन) है जिससे मतदाता यह जान सके कि उसका फॉर्म स्वीकार हुआ या नहीं, उसमें कोई गलती तो नहीं है, दस्तावेज पूर्ण हैं या नहीं, पावती या फॉर्म स्टेटस की कोई ट्रैकिंग नहीं हो रही है। पावती नहीं देने, फॉर्म के बिना दस्तावेज अपलोडिंग, और एकतरफा अपलोडिंग की यह पूरी प्रक्रिया “मतदाता के सूचित सहमति (प्दवितउमक ब्वदेमदज) के अधिकार का उल्लंघन है” जो भविष्य में नाम कटने, आपत्ति खारिज होने, या पक्षपातपूर्ण व्यवहार की आशंका को बढ़ाता है।
10. चुनाव आयोग का हर बी.एल.ओ द्वारा तीन बार संपर्क करने का दावा सिर्फ कागजी दावा है। अधिकांश मतदाता तो ऐसे हैं जिनके पास बी.एल.ओ आज तक नहीं पहुँचे। यह पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की मूल भावना के विरुद्ध है।
11. बी.एल.ओ को उच्चाधिकारियों द्वारा मौखिक आदेश दिए गए हैं कि किसी भी हाल में 25 जुलाई तक लक्ष्य (टारगेट) को पूरा करें, चाहे मतदाता मिलें या न मिलें। परिणामस्वरूप बिना दस्तावेज के ही फॉर्म जल्दबाजी में भरे जा रहे हैं। सादे ई.एफ (बिना हस्ताक्षर, बिना अंगूठा, बिना दस्तावेज अटैचमेंट) को ही डिजिटली अपलोड किया जा रहा है। यह प्रक्रिया विधिक और नैतिक दोनों स्तरों पर आपत्तिजनक है।नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा प्रेस विज्ञप्ति में जो दावे किए जा रहे है वो उनकी आत्मसंतुष्टि और संख्यात्मक उपलब्धियों की रिपोर्ट तो हो सकती है, लेकिन यह जनता के बीच पनप रही वास्तविक शंकाओं, न्यायालय की टिप्पणियों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में मतदाताओं के अधिकारों के हो रहे हनन पर कोई जवाब नहीं देती।
तेजस्वी यादव ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा प्रेस विज्ञप्ति सुधार की बजाय आँख मूंद लेने का उदाहरण बन रही है, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।इस अवसर पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, कांग्रेस विधायक दल के नेता डॉ. शकील अहमद खान, वी.आई.पी पार्टी के मुकेश सहनी, भाकपा-माले के कॉ. धीरेन्द्र कुमार झा, कॉ. के.डी यादव, सी.पी.आई.एम.के राज्य सचिव कॉ. ललन चैधरी, सी.पी.आई के कॉ. रामबाबू, राज्यसभा सांसद संजय यादव, राजद के प्रदेश प्रवक्ता एजाज अहमद, प्रदेश काॅग्रेस के मुख्य प्रवक्ता राजेश राठौर संवादाता सम्मेलन में उपस्थित थे।
(For More News Apart From India Mahagathbandhan accused the Election Commission News In Hindi, Stay Tuned To Rozana Spokesman Hindi)